BHOPAL. आज सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं पूरा देश राम मय है। जो राम भक्त है, राम मंदिर में रामलला को स्थापित होते देखना चाहता था और जो राम का भक्त नहीं है वो भी राम के जयकारे लगाने से खुद को रोक नहीं पाया है। ऊंचे अंतरिक्ष में उड़ती सेटेलाइट हो या विदेशी मीडिया के कैमरे की लैंस हो। आज हर नजर रामलला पर टिकी हुई है। ये समारोह जितना धार्मिक है। आगे उसका राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश भी की जाती रहेगी। एक सवाल जरूर सब के मन में उठ सकता है कि चुनाव में तो अभी वक्त है। फिर इतनी जल्दी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कर बीजेपी इसका सियासी माइलेज कैसे ले पाएगी। तो फिक्र मत कीजिए। बीजेपी ने इसकी पूरी प्लानिंग की है।
राम मंदिर का क्रेडिट बीजेपी और मोदी सरकार को
राम मंदिर का मुद्दा कोई आज का या चंद सालों का नहीं है। ये संघर्ष सदियों से चला आ रहा है जो आज पूरा हुआ। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसका क्रेडिट बीजेपी और मोदी सरकार को ही जाएगा। जिसे घर-घर तक पहुंचाने की पूरी प्लानिंग हो चुकी है। बीजेपी वो दल कतई नहीं है जो सिर्फ राम नाम के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करने के मूड में है। राम मंदिर के साथ माहौल तो खड़ा हो ही चुका है। अब बस इस अलख को जगाकर रखना है। बड़े शहर ही नहीं छोटे शहर से लेकर गांव-गांव और गली-गली तक वो ज्योत जलाकर रखनी है जो आज अयोध्या में प्रज्ज्वलित की गई है।
बीजेपी के बड़े नेता गांव में जाकर बिताएंगे पूरी रात
इसकी जिम्मेदारी निभाएंगे बीजेपी के बड़े नेता। जिन्हें अपने घर के आलीशान एसी कमरे से निकलकर और अपनी मॉर्डन गाड़ियों से बाहर निकलकर गांव-गांव तक जाना होगा। इन गावों में रुकना भी होगा। इस मिशन को बीजेपी ने नाम दिया है गांव चलें अभियान। इस अभियान के तहत बीजेपी के बड़े नेता गांव में जाकर पूरी एक रात बिताएंगे। बात सिर्फ रुकने ठहरने तक सीमित नहीं होगी। इस दौरान हर नेता को गांव वालों से संपर्क करना होगा उनकी शिकायतों और समस्याओं को सुनना भी होगा। हो सकता है बीजेपी ऐसे नेताओं की फेहरिस्त तैयार करने के बाद उन्हें सवालों की एक लिस्ट भी पकड़ा दी जाए। जिनके जरिए बीजेपी ये जान सकेगी कि ग्रामीणों को आने वाली सरकार से क्या उम्मीदें हैं और सरकार कहां कमजोर है। जिस पर आगे काम किया जा सकेगा। अभियान का जिम्मा लोकसभा क्लस्टर प्रभारियों को सौंपा जा चुका है। पूरे एक माह तक चलने वाले इस अभियान में बीजेपी प्रदेश की 23 हजार पंचायतों के तहत आने वाले 50 हजार से अधिक गांवों में दस्तक देने की तैयारी में है। जिस तरह बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा सीटों को क्लस्टर में बांटा है। उसी तरह प्रदेश में भी चार-चार सीटों का एक क्लस्टर बनाया गया है। हर क्लस्टर का प्रभारी उसी संभाग के बड़े नेता को बनाया है, जो केंद्र से लेकर जिला और विधानसभा स्तर तक समन्वय करेंगे। इस तरह बीजेपी ने शुरुआती लीड लेने का प्लान तैयार कर लिया है।
इस बार चुनाव में मोदी की गारंटी भी
इसका एक मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। वो भी आपको समझाता हूं। चुनाव के समय पर हर बार एक टर्म सुनाई देता है एंटीइंकंबेंसी। शब्द छोटा सा है, लेकिन चुनावी फिजा पर हावी हुआ तो हवा का रुख बदल देता है। इस ताकतवर शब्द का अर्थ है जनता की सरकार के खिलाफ नाराजगी। जो हर चुनाव से पहले सत्ता पक्ष को खूब डराती है। अब जब बीजेपी के हर नेता गांव-गांव तक जाएगा, उनका फीडबैक लेगा, शिकायतें सुनेगा। ये दिलासा देगा कि उनकी हर शिकायत दूर होगी। तो जाहिर है कि ये ट्रीटमेंट की वैद्य की तरह काम करेगा और औषधि बनेगा वो दिलासा जो नेता लेकर जाएगा। साथ में मोदी की गारंटी भी इस बार शामिल होगी ही। सो दवा और दुआ दोनों का काम होगा। तो बस यूं समझ लीजिए कि चलो गांव की ओर सिर्फ एक रणनीति नहीं है। बल्कि, एक नाराज मतदाता को मनाने का एक ट्रीटमेंट भी है। साथ में राम नाम का जयकार भी गूंजेगा तो सोने पर सुहागा वाला काम हो ही जाएगा।
भूले बिसरे कार सेवकों को भी सम्मान देने की तैयारी
एक तरफ क्लस्टर की जिम्मेदारी संभालने वाले नेता बीजेपी की साख मजबूत करेंगे तो विपक्षी दलों की जड़े भी कमजोर करने की पूरी तैयारी है। गांव-गांव जाकर रात बिताने वाले नेताओं को दूसरे दलों के नेताओं का मन भी खंगालना है। जैसे ही ये खटका होगा कि नेता अपनी पार्टी में खुश नहीं है या कोई असंतोष है तो उसे तुरंत बीजेपी में आने का न्यौता देना है। नजर तो उन नेताओं पर भी टिकी होगी जो नाराजगी के चलते या किसी भी कारण से बीजेपी छोड़ गए। ऐसे नेताओं की घर वापसी की कोशिशें भी तेज होंगी। भूले बिसरे कार सेवकों को भी पूरा सम्मान देने की तैयारी है। प्रदेश में जितने कार सेवकों ने राम मंदिर में अपना योगदान दिया है। उन्हें परिवार समेत रामलला के दर्शन कराने का जिम्मा खुद बीजेपी उठाने वाली है।
अबकी बार 400 पार बीजेपी के लिए कठिन नहीं
बीजेपी जो रणनीति तय करती है सख्ती से उसका पालन हो ये भी सुनिश्चित करती है। इस अभियान की जिम्मेदारी संभालने वाले नेताओं के भी हर मूवमेंट पर संगठन की नजर टिकी रहेगी। राम मंदिर और उसके बाद माइक्रोलेवल तक रणनीति बनाकर काम करने की रणनीति के बाद ये तय माना जा रहा है कि बीजेपी इस बार लोकसभा में बड़ा रिकॉर्ड बनाकर ही मानेगी। फिलहाल जो माहौल तैयार हुआ है और राम मंदिर ने बीजेपी के पक्ष में जो हवा बना दी है उसे देखते हुए लगता है कि अब की बार चार सौ पार कर पाना बीजेपी के लिए बहुत कठिन काम होने नहीं जा रहा है। चुनावी फिजा का रुख पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में है। खासतौर से हिंदी भाषी समेत पूरे उत्तर भारत में राम नाम के साथ बीजेपी के जयकारे गूंज रहे हैं। फिर मध्यप्रदेश तो वो प्रदेश है जहां कांग्रेस पिछले चुनाव में अपनी जमी जमाई सीटें भी हार गई थी। तो इस बार क्या उम्मीद की जा सकती है। प्रदेश की 29वीं सीट पर भी बीजेपी की नजर है। जिस तरह से बीजेपी ने लोकसभा चुनाव का रोडमैप तैयार किया है। उसे देखते हुए लगता है कि बीजेपी इस बार अपने मकसद में आसानी से कामयाब होगी। जब जीत इस कदर तय है तो सोचिए सब कुछ जानते बूझते भला कौन किसी और चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरने के बारे में सोचेगा।
चुनावी तैयारियों का खर्चा भी कांग्रेस के लिए मुश्किल
इसके बाद कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी, ये भी तय है। इंडिया गठबंधन कितना भी मजबूत हो जाए। बीजेपी के विजयी रथ को रोक पाने में सक्षम नजर नहीं आ रहा है, लेकिन परेशानी इससे भी ज्यादा बड़ी हो सकती है। कांग्रेस को इस सवाल का जवाब ही तलाशना पड़ सकता है कि आखिर चुनाव लड़ने के लिए कैंडिडेट कैसे मिलेंगे। इसकी वजह है, चुनाव छोटा हो या बड़ा हो कम खर्च में नहीं निपटता। बात लोकसभा चुनाव की हो तो चुनावी तैयारियों का खर्चा करोड़ों तक जाता है।
कांग्रेस को पार्टी का नाम बचाने वाले चेहरे की तलाश
विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस वैसे ही हाशिए पर है। लोकसभा में तस्वीर बहुत ज्यादा बदल जाएगी, इसकी उम्मीद बहुत कम तो क्या न के बराबर ही नजर आती है तो फिर कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी से चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपनी जीत के लिए कितना और कैसे आश्वस्त हो सकता है। फिलहाल मध्यप्रदेश में कमलनाथ के अलावा ऐसा कोई दिग्गज नजर नहीं आता जो लोकसभा चुनाव में ताल ठोंकने को तैयार हो। हो सकता है कमलनाथ के अलावा दिग्जविजय सिंह भी हर बार की तरह संकट मोचक बनकर मैदान में उतरें। इसके बाद भी 27 सीटों की गिनती बचती है। जिसके लिए कांग्रेस को सिर्फ मुफीद ही नहीं ऐसे चेहरे की जरूरत है जो न सिर्फ चुनाव में उतरे बल्कि, पार्टी का नाम भी बचाकर रख सके।
खैर... होई है वही जो राम रची राखा
बीजेपी के सामने पूरा रास्ता साफ है, जबकि कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। इसमें न हार्ड हिंदुत्व का सहारा है और न सॉफ्ट हिंदुत्व के आसरे की गुंजाइश बची है। हो सकता है कि कांग्रेस को भी ये आभास हो कि इस बार उसके सामने बड़ी चुनौतियां हैं, लेकिन उससे निपटने का प्लान क्या होगा। इसका ठोस जवाब अब तक कांग्रेस की किसी रणनीति में तलाशा नहीं जा सकता। खैर होई है वही जो राम रची राखा और राम का साथ इस बार कहां है ये सबको नजर आ रहा है।